पीरियड को लेकर लड़कियों को ही नहीं बनाना जागरुक, पूरे समाज को संदेश देना जरूरी

स्त्रियों के बदन को परंपराओं, धार्मिक मान्यताओं के नाम पर शुचिता के बोझ से इस कदर लाद दिया गया कि 21वीं सदी के दूसरे दशक के आखिरी वर्षो में भी वे इनसे मुक्ति पाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। उदाहरण के तौर पर मासिक धर्म (पीरियड) के मुद्दे पर ही चर्चा करें तो पता चलता है कि भारत में ही लड़कियों/महिलाओं को इन दिनों में किन खास मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह फेहिरस्त लंबी है, पर बताना इसलिए जरूरी है ताकि उन पर परिवार, समाज और सरकारी स्तर पर अधिक से अधिक चर्चा हो, समाधान तलाशे जाएं और रजोधर्म से संबंधित भ्रांतियां और शर्म उतनी ही तेजी से मिटें। सामाजिक मानसिकता में बदलाव के साथ-साथ लड़कियों/महिलाओं को उन सारी जरूरी सुविधाओं को मुहैया कराना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। रजोधर्म संबंधी स्वच्छता के लिए केवल लड़कियों/महिलाओं को ही जागरूक करना जरूरी नहीं है, बल्कि पूरे समाज में यह संदेश पहुंचाना अहम है।

गौरतलब है कि 2017 की विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर भारत की हैं और वह रजोधर्म स्वच्छता प्रोजेक्ट के तहत अभियान चला रही हैं। हरियाणा सरकार ने तो उन्हें इस काम के लिए अपना ब्रांड एंबेसडर भी नियुक्त किया है। 1मानुषी छिल्लर ने बीते दिनों देश की राजधानी दिल्ली में इस मुद्दे पर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मुलाकात कीं और पत्रकारों से भी मिलीं। उन्होंने कहा कि मासिक धर्म हमारी पहचान है। इसके लिए किसी भी तरह की शर्म महसूस करने की जरूरत नहीं है और न ही किसी को इसका अहसास करने की। जरूरी यह है कि हम इससे जुड़ी स्वच्छता का नियमित ध्यान रखें। व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भी केवल इसके लिए सकारात्मक रुख ही अपनाने की जरूरत है। आकार इनोवेशन फांउडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मानुषी छिल्लर ने कहा कि जागरूकता की कमी के अलावा मुल्क के देहाती इलाकों में सेनेटेरी पैड तक महिलाओं की पहुंच भी सीमित है। इस ओर भी ध्यान देना होगा।

उन्होंने कहा कि सेनेटरी पैड को लेकर युवतियां व महिलाएं जितनी खुलकर बात करेंगी उतनी ही इस जानकारी का प्रसार होगा। इसके जरिये ही हम स्वच्छ भारत की स्वस्थ नारी का निर्माण कर सकेंगे। रजोधर्म या मासिक धर्म या पीरियड के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखना बहुत जरूरी हो जाता है अन्यथा युवतियों/महिलाओं को कई तरह के संक्रमण अपनी चपेट में ले लेते हैं। अगर शुरुआत से ही इस स्वच्छता पर ध्यान दिया जाए तो युवतियों/महिलाओं को कई तरह के संक्रमणों व बीमारियों से बचाया जा सकता है। दरअसल भारत में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) एक बहुत बड़ा मुद्दा है। देश में एमएचएम पर की गई एक शोध से पता चलता है कि इसके प्रति जागरूकता बहुत कम है। 48 फीसद लड़कियां ही मासिक धर्म से पहले इसके बारे में जागरूक थीं। 23 फीसद लड़कियों को ही मालूम था कि ब्लीडिंग का स्रोत गर्भाशय है। 55 फीसद ने मासिक धर्म को सामान्य बताया।