वाहनों से होने वाले प्रदूषण से यहां के वातावरण में बदलाव

खबरें अभी तक। उत्तराखंड राज्य अपनी असीम सुंदरता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. राज्य की राजधानी देहरादून से भी कोई अछूता नहीं है लेकिन जितना सुंदर ये प्रदेश है उससे सुंदर कभी इसकी राजधानी दून हुआ करती थी. देहरादून अंग्रेजों का भी पसंदीदा शहर हुआ करता था लेकिन राज्य गठन के बाद देहरादून काफी बदल गया है. प्राकृतिक सुंदरता के साथ बासमती चावल, लीची, चाय के बड़े बागान और आबोहवा को लेकर देहरादून शहर कभी प्रसिद्ध था. वक्त के साथ शहर की आबादी बढ़ी और बासमती, लीची और चाय के बागानों में ईंट, बजरी के कंक्रीटों के बड़े-बड़े जंगलों में तब्दील हो गया.

साल में कई टन बासमती चावल का उत्पादन करने वाले कृषक आज खुद अपने लिए ही चावल नहीं उगा पा रहे हैं. बासमती तो दूर अब देहरादून की लीची और आम भी सिर्फ नामभर के लिए ही रह गए है. सड़कों पर चलने वाली बेहिसाब वाहनों से होने वाले प्रदूषण से यहां के वातावरण में काफी बदलाव आए हैं. वर्ष 2012—13 में प्रदूषण का स्तर 52885 पीपीएम था जो लगातार प्रतिवर्ष बढ़कर 2017—18 में 62179 पीपीएम तक पहुंच गया है.

जिले में 2001 में 1,282,143 की जनसंख्या थी. जनगणना 2011 के अनुसार देहरादून की जनसंख्या 1,696,694 हो गई है. शहर का व्यवस्थित रूप से संवारने का जिम्मा एमडीडीए का था लेकिन भ्रष्टाचार और नेताओं की लापरवाही के चलते कुछ नहीं हो पाया है. कुछ दशक पहले तक दून की फिजाएं शुद्ध हवा के लिए बेहद महफूज मानी जाती थी लेकिन अब इन हवाओं में प्रदूषण का जहर घुल गया है. वो दिन दूर नहीं जब बड़े महानगरों की तरह देहरादून भी प्रदूषित और बीमारियों का हब होगा और स्वच्छ दून सुन्दर दून का नारा महज औपचारिकता बनकर रह जाएगा.