फेसबुक के लिए अहम पल, नए नियम बनाए या फिर खात्मे का खतरा: विशेषज्ञ

दुनिया में सबसे बड़े यूजर बेस वाला सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक इन दिनों मुश्किलों में घिरा है. दरअसल फेसबुक पर आरोप है कि उसने अपने यूजर्स के डेटा गलत ढंग से कैंब्रिज एनालिटिका नाम की एक कंपनी के साथ साझा किया, जिसने इसका इस्तेमाल अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को जिताने के लिए किया.

इस मामले पर सोशल मीडिया के मनोविज्ञान के मामले के जानकार ऑक्सफोर्ड यूर्निवर्सिटी के एंड्रयू प्रिज़्बिल्सकी ने कहा कि यह 2012 के बाद से फेसबुक के लिए सबसे महत्तवपूर्ण पल है. उन्होंने सोशल मीडिया में निहित विनाशकारी शक्ति को परमाणु बम के जनक, रॉबर्ट ओपनहाइमर के उस वाक्य से करने की कोशिश की, जिसमें उन्होंने कहा था कि “अब मैं मौत बन चुका हूं, विश्व का संहारक.”

प्रिज़्बिल्सकी ने कहा कि अब समय आ गया है जब ऐसे नियम बनाए जाएं जिससे फेसबुक यूजर्स के अधिकारों की रक्षा की जा सके. उन्होंने कहा कि इसी तरह के संकटों ने दूसरे क्षेत्रों में भी नैतिक मानकों की स्थापना के लिए प्रेरित किया था.

उन्होंने उदाहरण देते हुए तर्क दिया कि रसायन शास्त्र के क्षेत्र में यह पल डायनामाइट और रासायनिक हथियारों के अविष्कार के बाद आया था, वहीं भौतिकी के क्षेत्र में यह पल परमाणु हथियारों की खोज के बाद आया, जबकि इसके लिए नैतिक नियम बनाने पर सोच विचार किया जाने लगा.

फेसबुक का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है लोगों का इस पर विश्वास. प्रिज़्बिल्स्की दो दिनों तक सैन फ्रांसिस्को में फेसबुक के हेडक्वार्टर पर रहे और वहां उन्होंने मार्क ज़करबर्ग के चीफ ऑफ से स्टाफ क्रिस कॉक्स से मुलाकात कर उन्हें सलाह दी कि फेसबुक को किस तरह से अपनी काम करने के तरीके को बदलना चाहिए.

हालांकि गूगल के रिसर्चर फ्रेंकोइस कोलेट को इसमें संदेह है. उनका कहना है कि फेसबुक के साथ सिर्फ आपके निजी डेटा की चोरी से असुरक्षा का ही मुद्दा नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक तौर पर आप पर इसका क्या असर पड़ता है यह ज़्यादा चिंताजनक है.

कुछ अन्य विचारकों का मानना है कि निजी डेटा के चोरी के डर से फेसबुक से बड़ी संख्या में लोग इसे छोड़ सकते हैं. इस घटना के बाद अब तक फेसबुक के शेयर के मूल्यों के नीचे जाने की वजह से इसे अरबों का नुकसान हो चुका है.

वहीं फ्रेंच समाज विज्ञानी नताली नादौद अलबर्टिनी ने कहा कि कैंब्रिज एनालिटिका मामले के बाद सारी हदें पार हो गई हैं. चुनावों में किसी का डेटा यूज़ किया जाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं है. हालांकि हमें पसंद हो या नहीं लेकिन सोशल मीडिया एकाउंट रखना हमारी मजबूरी है.

पेन्सिलवेनिया के ले विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एरिक बॉमर का कहना है कि हममें से काफी लोग चाहते हैं कि फेसबुक से किनारा कर लें, लेकिन जैसे ही हम कंप्यूटर के सामने बैठते है वैसे ही हमारी उंगलियां ‘F Key’ की ओर चली जाती हैं. जिन लोगों ने फेसबुक को छोड़ दिया है वो लोग फिर से इसकी ओर खिंच रहे हैं. फेसबुक के अलावा दूसरे किसी सोशल मीडिया के पास इतना बड़ा यूज़र बेस भी नहीं है. हालांकि इसमें बदलाव आ सकते हैं और इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं.

फेसबुक पर सबसे स्थाई उपभोक्ता 40 से 60 साल के बीच के हैं. कम उम्र के यूज़र्स या तो इसे डिऐक्टिवेट कर रहे हैं या तो ऐसा करने की सोच रहे है. हालांकि फेसबुक के प्रति लगातार विरोध बढ़ रहा है, लोगों का कहना है कि मुझे फेसबुक नहीं पसंद है इसलिए इंस्टाग्राम यूज़ करता हूं. लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि इसका मालिक भी फेसबुक ही है.