पानी की बचत और आलू की फसल को लेकर सॉइल लेस तकनीकी का प्रयोग

खबरें अभी तक। हरियाणा के करनाल में अब पानी की बचत और आलू की फसल की पैदावार को लेकर सॉइल लेस तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है। शामगढ़ स्थित आलू प्रद्योगिक केंद्र के वैज्ञानिक सॉइल लेस तरीके से बिना मिट्टी के नारियल के बुरादे का इस्तेमाल कर अच्छी पैदावार और अच्छी गुणवता वाले आलू के बीज तैयार करने में जुटे हुए है !

प्रदेश में इस तरह की तकनीकी का पहली बार प्रयोग किया जा रहा है ताकि किसानो को अच्छी गुणवता और अच्छी पैदावार वाला बीज उपलब्ध करवा जा सके. इस तकनीकी को लेकर कृषि वैज्ञानिकों का कहना है की इस तकनीक से पानी की तो बचत होती ही है और साथ में जो मिट्टी में विषाणु रोग होते है वह आलू के बीज में नही आते है जिससे विषाणु रोग रहित अच्छी गुणवता और अच्छी पैदावार वाला आलू का बीज मिल पाता है।

सॉइल लेस तकनीक के माध्यम से एक पौधे से 8 से लेकर 12 छोटे आलू [बीज] मिल जाते है जिसकी पैदावार दुगनी है और गुणवता सबसे अच्छी ! उन्होने बताया कि 90 से 100 दिनों में यह आलू का बीज छोटा आलू तैयार हो जाता है !