नक्सली हमले में शहीद हुए जवान की एक झलक पाने के लिए उमड़ा हुजूम

खबरें अभी तक। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों के कायराना हमले में मारे गए बेगूसराय के राजेश कुमार का सव आज जैसे ही बेगूसराय जिला में पहुंचा वैसे ही हजारों हजार की संख्या में लोगों ने अपने वीर सपूत को अभिनंदन किया और देशभक्ति के नारे लगाएं।

तुमसे रोशन था सारा जहां तुम क्या गए सारे शहर की रोशनी चली गई जी हां बिल्कुल यही नजारा देखने को मिला आज बेगूसराय जिला के बिहट में जहां नक्सली हमले में शहीद हुए जवान राजेश की एक झलक पाने के लिए हजारों की संख्या में जिले भर से लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। आलम यह रहा कि गंगा और गंडक के बीच बसी बेगूसराय की धरती पर लोगों की आंखों से में ही गंगा और गंडक के साक्षात दर्शन हो रहे थे। हालांकि इस मौके पर सरकार और सिस्टम के प्रति लोगों में काफी आक्रोश भी देखने को मिला। जहां लोग शहीद को श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे थे। वहीं सरकारी सिस्टम के प्रति लोगों में खासा आक्रोश देखने को मिला।

श्रद्धा और आक्रोश के बीच आखिरकार शहीद राजेश का शव जब उनके पैतृक गांव बिहट पहुंचा तो जिले के मुख्य द्वार सिमरिया धाम से ही लोगों ने राजेश की अगवानी शुरू की गई। आखिरकार शहीद का पार्थिव शरीर उनके पैतृक आवास पहुंचा जहां पर परिजनों तथा लोगों की भावनाओं को सांझा करना शब्दों में संभव नहीं है। पिता का क्रंदन माता का विलाप और पत्नी के दर्द के सामने मनो सरकारी तंत्र भी सिमट कर रह गया। आखिरकार हृदय विदारक दृश्यों के बीच शव को सम्मान के साथ श्रद्धांजलि भी दी गई। लेकिन उन श्रद्धांजलि से अधिक लोगों के आंखों से निकल रही श्रद्धांजलि कहीं न कहीं हृदय में एक वेदना उत्पन्न कर रही थी।

भले ही एक पिता के दिल में देश प्रेम की भावना भरी हो। लेकिन एक पुत्र के लिए दर्द होना भी स्वाभाविक है। जहां एक पिता का दर्द देश के सामने सबसे बड़ा सवाल बनकर खड़ा है। वहीं एक पत्नी की आह भी रहनुमाओं के सामने कुंभकर्णी प्रश्न बना हुआ है। पिता के अनुसार भले ही पुत्र की जान देशप्रेम में हो गई हो लेकिन अब उसके बच्चों का लालन पालन उचित शिक्षा सरकारी तंत्र पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।

अपनी जिंदगी के सबसे बड़े सदमे को झेल रहे शहीद की पत्नी स्वीटी ने जब सरकारी तंत्र के सामने अपनी जुबान खोली तो मानो सिस्टम की सच्चाई सामने आई। स्वीटी ने जब अपने बच्चों के लालन पालन सहित अपनी परवरिश तथा बच्चों के भविष्य के विषय में पूछा तो सबकी जुबान बंद हो कर रह गई। स्वीटी का मानना है शहीद पति के बाद उसके घर में लालन पालन करने वाला कोई नहीं बचा। अतः सरकार के द्वारा कम से कम एक करोड़ रुपए एवं एक नौकरी सहित बच्चों की समुचित शिक्षा एवं परवरिश की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए।

आखिरकार मौके पर पहुंचे आला कमान एवं बिहार सरकार के मंत्री को लोगों के आक्रोश का दंश झेलना पड़ा। जब आक्रोशित लोगों ने बिहार सरकार के श्रम संसाधन मंत्री विजय सिन्हा को बंधक बनाकर उनसे शहीद परिवार के लिए उचित मुआवजा की मांग की तो विजय सिन्हा भी कुछ कहने से बचते नजर आए।  आखिरकार लोगों के आक्रोश के बीच स्थानीय नेताओं ने किसी तरह श्रम संसाधन मंत्री को बाहर निकाला।

लेकिन इतने के बावजूद भी आखिर शहीद सैनिक के पुत्र 5 वर्षीय ऋषभ ने भी आगे चलकर पिता के पदचिन्हों पर चलने की कसम खाई। अपने पिता के हत्यारों से बदला लेने की बात अभी से मन में ठान ली है। अपने पिता को मुखाग्नि दे रहे 5 वर्षीय ऋषव से आज समाज को एक सीख लेने की आवश्यकता है । आखिर हो भी क्यों ना एक देशभक्त का पुत्र देश भक्त ही हो सकता है।

लगातार हो रही आतंकी एवं नक्सली हमलों के बीच मारे जा रहे सैनिकों के परिजनों का यह दुख आज समाज एवं सरकार के लिए एक प्रश्नवाचक चिन्ह बनकर खड़ा हुआ। क्योंकि वह दिन और रात दुश्मनों से देश एवं देशवासियों की रक्षा करने वाले सैनिकों के परिजनों को अगर गिर गिराना पड़े तो इससे अधिक दुख की बात कोई हो नहीं सकती। निश्चित रूप से सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।