दर्ज केसों को वापस लेना चाहती है सरकार, कोर्ट ने दिए निर्देष

खबरें अभी तक। साल 2016 में हिंसक जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान दर्ज केसों को वापस लेने की हरियाणा सरकार की कोशिशें अभी थम गयी हैं। हरियाणा के एडवोकेट जनरल बलदेव राज महाजन ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में कहा कि अगली सुनवाई-11 जुलाई तक राज्य सरकार केस वापसी की कोशिश नहीं करेगी। एक्टिंग चीफ जस्टिस अजय कुमार मित्तल और जस्टिस तेजिंदर सिंह ढींडसा के समक्ष सरकार की ओर से ऐसा तब कहा गया जब कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि कुल दर्ज केसों में से 20 प्रतिशत को राज्य सरकार वापस ले रही है.

ये मामले जाट समुदाय के लोगों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर चलाये गये आंदोलन के दौरान गंभीर हिंसात्मक कार्रवाई के बाद दर्ज किये गये थे. मंगलवार को सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी यानी न्याय मित्र अनुपम गुप्ता ने बेंच से कहा कि हरियाणा के 21 जिलों में पुलिस द्वारा दर्ज 2105 मामलों में से 407 केस सरकार वापस लेना चाहती है। गुप्ता ने कहा कि आंदोलन के दौरान बहुत खराब स्थिति में रहे झज्जर जिले में दर्ज 172 में से 82 केस वापसी की बात की जा रही है।

वापस लिये जाने वाले मामलों में से 53 एफआईआर आगजनी, नुकसान और लूट आदि के थे….सरकार ने बाद में प्रकाश सिंह कमेटी गठित की थी। परिस्थितियों को बहुत खराब बताते हुए गुप्ता ने कहा, यहां तक कि ‘सेना भी विफल’ हो गयी। गुप्ता ने कहा, ‘वर्दी में तैनात लोगों के हाथ बंधे हुए थे क्योंकि उन्हें गोली न चलाने के निर्देश थे। परिणामस्वरूप बलवा हुआ. सेना ने सम्मान खोया. अगर आप यह फार्मूला कश्मीर या अन्य हिस्सों में लागू करेंगे तो फिर देश का भगवान ही मालिक है।’

हिसार का जिक्र करते हुए गुप्ता ने कहा यहां 63 में से 36 केस वापस लिये जाने को कहा गया। रोहतक में स्थिति कुछ अच्छी थी। सुनवाई के दौरान यह भी बताया गया कि 1000 से ज्यादा मामलों में शामिल लोगों की पहचान नहीं की जा सकी। गुप्ता ने कहा कि किसी भी एफआईआर को वापस लेने की प्रक्रिया सीमित करने की जरूरत है।

दूसरी तरफ हरियाणा के एडवोकेट जनरल बदलेव राज महाजन और अतिरिक्त एडवोकेट जनरल पवन गिरधर ने कहा कि केस वापसी कोई स्वत: प्रक्रिया नहीं है। इसमें ट्रायल कोर्ट की अनुमति जरूरी थी। जिरह पर संज्ञान लेते हुए बेंच ने एडवोकेट जनरल को निर्देश दिया कि अगली सुनवाई तक केस वापसी की प्रक्रिया न चले