देशभर में धड़ल्ले से हो रही बच्चों की तस्करी, मूकदर्शक बनी सरकार

ख़बरें अभी तक। देश के विभिन्न शहरों-गांवों से बच्चों की चोरी-तस्करी आम बात हो गई है, हर दिन धड़ल्ले से बच्चों की तस्करी हो रही है. हर दिन सौ से अधिक बच्चे लापता होते है. इनमें से 50 प्रतिशत बच्चियों की संख्या है. बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा जैसे राज्यों में गरीब ग्रामीण परिवारों के बच्चों को तस्कर दो-तीन हजार रुपये में मां-बाप से ही खरीद रहे है,  इसलिए अनेक मामलों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हो रही है. जिसमें बच्चियों को देह व्यापार और लड़कों को कारखानों में दखेला जा रहा है.

बता दें कि ऐसे मामलों में बिहार शीर्ष पर है और राजस्थान इन बच्चों के लिए यातना गृह बन चुका है. यहां हजारों चूड़ी, पत्थर कटिंग, वस्त्र आदि के कारखानों में हजारों की संख्या में बच्चों के कैद होने की आशंका जताई जा रही है. यहां शर्म की बात यह है कि सिस्टम और सरकार इस से बखूबी वाकिफ है. लेकिन सभी मूकदर्शक बने हुए है.

वहीं बाल आयोग और मानवाधिकार आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, सभी चिंता जताते रहे हैं, लेकिन ठोस समाधान सामने नहीं आ सका है. बच्चों को राजस्थान, आंध्र प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों, महानगरों और पड़ोसी देशों तक में छोटे-बड़े कारखानों में खपाया जा रहा है. वहीं राजस्थान में पड़ताल करने पर अनेक बातें सामने आईं, जहां गली-कस्बों में बने ऐसे कारखानों के मुख्य द्वार पर बाहर से ताला लगा कर रखा जाता है. बच्चों को बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी जाती है, अब तक पुलिस ने जो भी कार्रवाई की वह मुखबिर और स्वयंसेवी संगठनों की सूचना के आधार पर की है. इन कारखानों में काम करने वाले 90 प्रतिशत बाल श्रमिक बिहार के गया, पूर्णिया, बदीलगढ़, निचलगंज, किशनगढ़, सिवान और पटना जिलों के रहने वाले हैं.

वहीं कुछ महीने पहले भट्टा बस्ती से 76 बाल श्रमिकों को स्वयंसेवी संस्था रेस्क्यू जंक्शन के साथ मिलकर पुलिस ने मुक्त करवाया कर बिहार भेजा है. इनमें सबसे अधिक 22 बच्चे बिहार के गया जिले के थे, हालांकि इसके बाद भी करीब एक चौथाई बच्चों की पीड़ा खत्म नहीं होती और कुछ महीनों बाद वे फिर किसी कारखाने में पहुंचा दिए जाते हैं और इनके ऊपर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.