उज्जवला योजना कितनी कारगर? सिलेंडर बेचने को मजबूर गरीब

खबरें अभी तक। देशभर में करीब दो साल पहले शुरू हुई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का मकसद गरीब परिवारों को कुकिंग गैस कनेक्शन दिलाना और पर्यावरण के अलावा उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का निवारण था। इस योजना का सरकार हर जगह बखान करती घूम रही है कि हमने घरों को धुंए से मुक्त कर दिया है और सभी को गैस कनेक्शन दे दिए हैं। इसमें काफी हद तक सच्चाई है कि ज्यादातर लोगों को इस योजना के तहत गैस कनेक्शन दे दिए गए हैं।

हरियाणा में करीब 4 लाख लोगों को इस योजना के तहत कनेक्शन दिए गए हैं। लेकिन यह आधी सच्चाई है, इस योजना में दिक्कतें भी काफी हैं। हर दो महीने पर गैस सिलेंडर रिफिल कराने के लिए 700 से 1 हजार रुपए तक की रकम कहां से लाएं? दैनिक मजदूरी कर किसी तरह लोग परिवार के लोगों का पेट पालते हैं। इससे पहले सस्ते रेट पर केरोसिन तेल मिल जाता था जो अब बंद कर दिया गया।

सस्ते रेट पर सिलेंडर तो ले लिए लेकिन अब इसे रिफिल करवाने के लिए शुरुआत में पूरी राशि देनी होती है और बाद में सब्सिडी खाते में आती है। इतनी रकम एक साथ मजदूरी करने वाले व्यक्ति एकत्रित नहीं कर पा रहे हैं। यही कारण है कि काफी लोगों ने सिलेंडर लेने के बाद इसे दोबारा रिफिल ही नहीं करवाया है। जिससे लोगों को इस योजना का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। योजना के पात्रों ने कहा कि अधिकारियों ने टारगेट पूरा करने के लिए गैस कनेक्शन दे दिए। सस्ता मिलने वाला केरोसिन बंद कर दिया।

सिलेंडर भरवाने को करीब 700 रुपए चाहिए, सब्सिडी बाद में आती है। मजदूरी से घर चलाते हैं। जिस महीने पैसे हो जाएं तो सिलेंडर रिफिल करवा लेते हैं। अब लकड़ी जलाकर ही खाना पकाना पड़ता है। कई जगह पर तो स्थिति इतनी खराब है कि लोगों ने सिलेंडर को 500 से 1 हजार रुपए तक में दुकान और रेहड़ियों वालों को बेच दिए हैं।