नवजोत सिंह सिद्धू ने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के लगाए नारे!

खबरें अभी तक। पंजाब के संस्कृति मंत्री इन दिनों पंजाब में अपनी संस्कृति का परिचय दे रहे हैं. वो संस्कृति है आपसी भाईचारे और गले लगने की. हालांकि वो इस संस्कृति का परियच भी ऐसे समय में दे रहे हैं जब देश ने पाकिस्तान में अमन का पैगाम लेकर जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी जैसा राजनेता खो दिया है. हो सकता है सिद्धू इसे दोस्ती की नई शुरुआत बताएं.

पूर्व क्रिकेटर और पंजाब के मंत्री नवजोत सिद्धू को अपने देश से ज्यादा अपनी दोस्ती की फिक्र है. उन्हें देश के सैनिकों और राजनेताओं से ज्यादा इमरान खान की फिक्र है. उन्हें बेसब्री है पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा से गले लगने की. क्योंकि इधर देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अंतिम संस्कार में सबकी आंखें नम थी तो उधर कांग्रेसी नेता नवजोत सिद्धू पाकिस्तान की सरजमीं पर खिलखिलाकर हंस रहे थे. और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे.

सिद्धू ने पाक के आर्मी चीफ को ऐसे गले लगाया जैसे दो बिछड़े भाई मिले हों. तस्वीरों को देखकर ऐसा लगता है जैसे सिद्धू पाकिस्तान के आर्मी चीफ को कह रहे थे आ गले लग जा.

इन तस्वीरों को देखकर आप खुद अंदाजा लगा लेंगे कि कौन किसे गले लगने को बुला रहा है..वैसे भी सिद्धू पंजाब के संस्कृति मंत्री हैं तो गले लगने का संस्कार तो दिखाना ही था. हालांकि ये पहले बीजेपी में भी थे तो संस्कार किस पार्टी के हैं ये नहीं पता. हो सकता है गले लगने का संस्कार घरेलू भी हो. अब सिद्धू की इस हरकत पर विरोधी निशाना साधने में लगे हैं. हो सकता है कांग्रेस भी खुद को इससे किनारे कर ले. लेकिन सवाल ये है कि आखिर सिद्धू को इमरान खान से ऐसा क्या लगाव था. जो वो बुलावे को टाल न सके..क्योंकि पाकिस्तान से बुलावा तो पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर और कपिलदेव को भी आया था. लेकिन वो नहीं गए और वैसे भी बीजेपी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी पहले ही सिद्धू को पाकिस्तान न जाने की सलाह दे चुके थे.

लेकिन सिद्धू को भला किसी की सलाह की क्या फिक्र है. उन्हें तो फिक्र इस बात की है कि कहीं पाकिस्तान के नए वजीर ए आजम और मियां इमरान खान न रूठ जाएं. कहीं आंतक को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान के नए वजीर ए आजम से दोस्ती न टूट जाए. तभी तो सीमाओं की डोर उन्हें रोक न सकी. जवानों की शहादत पर वो शर्मिन्दा न हो सके और वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान पहुंच गए. हैरानी की बात तो ये है कि जिस पीओके को भारत अपना हिस्सा मानता है उसके राष्ट्रपति के बगल में बैठकर सिद्धू अपने दोस्त को शपथ लेते देख रहे थे. लेकिन उनके मन में उस राष्ट्रपति और उस सरकार को लेकर तनिक भी घृणा नहीं आई जो भारत में आतंक को बढ़ावा दे रही है, जहां की सरकारें पीओके के नागरिकों पर अत्याचार कर रही है. लेकिन शायद सिद्धू ये भूल गए कि बाधाओ पर विजय पाना, चैंपियंस का किरदार है और दुश्मनों से लगे लगने वाला सबसे बड़ा गुनाहगार है.