आखिर क्यों हर बार शहीदों की शहादत को राजनैतिक रंग दिया जाता है?

ख़बरें अभी तक। आखिर क्यों हर बार शहीदों की शहादत को राजनैतिक रंग दिया जाता है? शहीद नरेन्द्र सिंह के साथ पाकिस्तानी घुसपैठियों ने जिस तरह बर्बरता की है उससे पूरा देश गुस्से में है। हर बार भारतीय सेना के शहीद जवानों की शहादत पर राजनैतिक पार्टियों और विपक्ष के सवाल जवाबों में शहीद को उसकी शहादत का न्याय नहीं मिल पाता है। एक सिपाही की शहादत महज एक मौत बनकर रह जाती है। टीवी डिबेट्स में पार्टियों के प्रवक्ता बुलाए जाते हैं, चीख कर, चिल्ला कर स्क्रिप्ट पढ़ी जाती है और अंत में ये डिबेट बस घंटे का प्रोगाम बनकर रह जाती है। शहीद के परिवार पर क्या बीत रही है, उसकी पत्नी, बेटे, भाई और मां के आंसू देखकर भी मदद के नाम पर केवल आश्वासन दिए जाते हैं।

कल एक डिबेट में शहीद नरेंन्द्र सिंह के बेटे मोहित दहिया से लाईव बातचीत की जा रही थी। मोहित दहिया ने कल जो भी कहा उसमें हर भारतीय और उनके पिता के लिए भावुकता के साथ गर्व भावना थी। उन्होंने ‘ एक सर के बदले दस सर काट लाने ‘की बात नहीं की, बस इतना ही कहा कि इतने ही बदले से क्या उनके पिता की शहादत को अमरता मिलेगी। मोहित कह रहे थे कि राजनैतिक कसीदे से उसको शहीद का बेटा ना कहा जाए। मोहित बार-बार शहीद के बेटे होने पर गर्व महसूस की बात कह रहे थे पर साथ-साथ आग्रह भी कर रहे थे कि उनको राजनैतिक आधार पर ना बांटें। मोहित दहिया सरकार से उनकी मदद की बात कर रहे थे। वो कह रहे थे की मैं केवल गर्व के साथ अपने परिवार का पेट नहीं भर सकता, उसे उसके परिवार के भरण-पोषण के लिए नौकरी चाहिए। जब उनके पिता ने देश के लिए जान देते वक्त एक बार भी नहीं सोचा तो क्यों इस देश के नियम, नेता और पार्टियां उनके परिवार के लिए निर्णय लेने में इतना वक्त लगा रहीं हैं?

डिबेट की जिस तरह हमेशा ही बिना निष्कर्ष समाप्ति होती है इसी तरह अबकी बार भी ऐसा ही हुआ। हालांकि मोहित को नौकरी देने की बात तो कही पर पूरी तरह से राजनैतिक घोषणा की तरह। मोहित बार-बार उनके हालात से देश को अवगत करा रहे थे और अपनी बात पर सही निर्णय ना मिलने पर मोहित ने डिबेट को छोड़ना ठीक समझा। पूरी डिबेट में उपस्थित मेहमानों ने भी उनके परिवार को संरक्षण देने के लिए कहा पर फिर भी ये डिबेट महज प्रोगाम बनकर रह गई ।