भारतीय परंपराओं में रिश्तों की अहमियत सिखाता है भैया दूज पर्व …

 खबरें अभी तक । हमारे देश में कितने सारे ऐसे त्योहार आते हैं,जो पारिवारिक रिश्तों को निभाने का संदेश देते हैं। दीपावली हो या होली हो , हर त्योहार परिवार को अपनी परंपराओं से एक सूत्र में जोड़ने का संदेश देता है। भाई दूज भाई बहनों का त्योहार है, इसे दिवाली के दो दिन के बाद मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहनों के बीच प्रेम और स्नेह भाव को बढ़ाता है। जिस तरह भाई-बहनों के त्योहार रक्षा बंधन का विशेष महत्व है उसी प्रकार भाई दूज का भी अपना विशेष महत्व है। इस दिन बहनें भाई की लंबी आयु और उनके स्वास्थ्य की मंगल कामना का व्रत रखती हैं। इस पर्व को भ्रातृ द्वितीया भी कहा जाता है।

क्या है भाई दूज की कथा-
पारंपरिक कथाओं के अनुसार, भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से ही यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। बहन यमुना और भाई यमराज के बीच बड़ा स्नेह था। विवाह के बाद भी यमुना ने यमराज उतना ही स्नेह रखा जितना वह पहले रखती थीं। वे बार-बार उनसे अपने घर आने का निवेदन करती थी लेकिन यमराज बार-बार व्यस्त कहकर इसे टाल जाते थे।एक दिन कार्तिक शुक्ल का समय था। यमुना ने इस दिन भी उसे अपने घर पर भोजन के लिए निमंत्रण दिया और इस बार उन्हें अपना कहा मानने के लिए वचनबद्ध कर लिया।

यमराज ने सोचा मैं लोगों के प्राण हरने वाला हूं, कोई मुझे अपने घर नहीं बुलाना चाहता लेकिन बहन जिस श्रद्धा से मुझे बार-बार बुला रही हैं मुझे जरूर जाना चाहिए। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक निवास करने वालों प्राणियों को मुक्त कर दिया। जब वे बहन के घर पहुंचे तो यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। यहां बहन ने स्नान-ध्यान करके भाई के लिए तरह-तरह के पकवान और व्यंजन बनाकर और परोस कर खिलाया। इस आतिथ्य से खुश होकर यमराज ने यमुना से वर मांगने को कहा।

इस पर यमुना ने मांगा कि हर साल वो उनके घर आय़ा करें। इस दौरान हर बहन अपने भाई का सत्कार करे और दोनों में स्नेह बना रहे। यमराज ने उन्हें आशीर्वाद दिया और चले गए। यही कारण है कि इस दिन यमुना और यमराज दोनों की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो अतिथियों का सत्कार करते हैं उन्हें यम का भय नहीं रहता।

भाई दूज की क्या है मान्यता

  1. इस दिन बहनें बेरी पूजन करती हैं। इसके अलावा बहनें भाइयों को तेल लगाकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा यमुना में नहीं नहाया जा सके तो भाई को बहन के घर नहाने की परंपरा भी है।
  2. इस दिन परंपरा है कि बहन अपने भाइयों को चावल खिलाएं। बहन के घर पर भाई को भोजन कराने का विशेष महत्व माना जाता है। यदि अपनी सगी बहन ना भी हो तो किसी भी बहन के साथ इस परंपरा का निर्वहन कर सकते हैं।
  3. यदि रिश्तेदार में कोई भी बहन न हो तो गाय, नदी आदि स्त्रीत्व पदार्थ को मान लिया जाता है। उनके समीप बैठ कर इन परंपरा को निभाया जा सकता है।
  4.  इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी लोकप्रिय है। इस दिन यमराज तथा यमुना जी के पूजन का विशेष महत्व है।भाई दूज पूजा और तिलक का शुभ मुहूर्त

     सुबह पूजा का मुहूर्त: 9:20 से 10:35 बजे तक और संध्या काल में पूजा मुहूर्त: 4:25 से 5:35 बजे तक है।