1936 की आजादी से पहले की पहली शुगर मिल अब हो गई सील

ख़बरें अभी तक। काशीपुर इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर काशीपुर शुगर मिल को कब्जे में ले लिया है। अब इसे राज्य सरकार की उदासीनता कहे या फिर मिल मालिकों की दबंगई मगर दोनों ही सूरतो में काशीपुर शहर का एक पुराना इतिहास खत्म हो गया है। जिसका नाम अब केवल फाइलों में ही रह गया है। काशीपुर सहित आस-पास के ग्रामीण किसान पिछले कई सालों से अपने गन्ने के बकाया भुगतान को लेकर आंदोलन कर रहे है लेकिन अभी तक किसानों को पैसा नहीं मिल पाया है। किसानों ने कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के बैनर तले अपने हक की लड़ाई लड़ी।

 

मगर किसानों का दर्द किसी ने नहीं दिखा। पिछली सरकार ने भी किसानों का बकाया देने की बात कही थी साथ ही कहा था कि कमेटी बनाकर जो भी किसानों का बकाया है। वह किसानों को दिलवाया जाएगा लेकिन वह सब हवाईयां बनकर रह गया।  काशीपुर की पहचान और उसका दिल कहे जाने वाली काशीपुर शुगर मिल का अब केवल नाम मात्र ही रह गया है। जिस मिल का अपने आप में एक खासा वजूद था, आज उस मिल में ताले लगे हुए है। जोकि उस समय के आस-पास के इलाकों कि सबसे पहली और सबसे बड़ी शुगर मिल।

 

कर्मचारी रोटी-रोटी को मोहताज हो रहे है जिनकी सुध न तो सरकार ले रही है और ना ही प्रशासन। मिल मालिकों की दबंगई के चलते लगभग कर्मचारियों का तीस से चालीस करोड़ और किसानों का उन्तीस करोड़ रुपए बकाया है। जसपुर आये अपने दौरे में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बंद पड़ी काशीपुर चीनी मिल में काम करने वाले सैकड़ो कर्मचारियों और मिल में गन्ना देने वाले किसानो के लिए खुद एक लीगल कमेटी बनाने का प्रशासन को आदेश  दिया था जिसकी अभी तक जांच कमेटी बनी है या नहीं ये भी कोई नहीं जानता।

 

गौरतलब है कि ऊधम सिंह नगर जिले की सबसे पुरानी मिल काशीपुर शुगर मिले ही सरकार और प्रशासन की नाकामी के चलते बंद हो गयी थी। वहीँ किसानों के बकाया गन्ने के भुगतान को लेकर प्रदेश के गन्ना मंत्री मोदी सरकार को दोष दे रहे है।  फिलहाल चाहे गलती किसी की भी हो लेकिन कर्मचारी भुखमरी की कगार पर पहुंच गए है।  ऐसे में इनके आसुओं को कौन पोंछेगा।